Donald Trump vs Jerome Powell : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की किसी के साथ नहीं पट रही. यहां तक कि उनकी रिपब्लिकन पार्टी के लीडर ही उनके दुनियाभर के देशों पर लगाए गए टैरिफ से नाखुश हैं. हालांकि टैरिफ को 90 दिनों के लिए टाल दिया गया है, मगर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन के साथ टकराव जारी है. यही नहीं, ट्रंप की तो अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक के मुखिया जेरोम पॉवेल से भी नहीं बन रही. दोनों के बीच मतभेद हैं, जो खुलकर सामने आ चुके हैं. अमेरिकी फेड की नीतियों का असर दुनियाभर के बैंकिंग सिस्टम पर होता है. यदि ट्रंप और पॉवेल ही एकमत नहीं है तो दुनिया में स्थिरता की उम्मीद करना बेमानी हो जाता है.
दरअसल, ट्रंप और पोवेल के बीच आर्थिक सोच, नीतियों और फेडरल रिजर्व की भूमिका जैसे आधारभूत मुद्दों पर बड़ा मतभेद है. ट्रंप चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाने के लिए ब्याज दरों को कम किया जाए, ताकि लोग ज्यादा खर्च करें और बिजनेस को बढ़ावा मिले. वहीं, जेरोम पॉवेल का मानना है कि फेडरल रिजर्व को स्वतंत्र रूप से काम करने देना चाहिए और उसका मुख्य लक्ष्य महंगाई को काबू में रखना और रोजगार को अधिकतम स्तर पर पहुंचाना होना चाहिए. कुल मिलाकर, ट्रंप बच्चों की तरह सबकुछ जल्दी चाहते हैं, लेकिन इकॉनमी को बेहतर तरीके से समझने वाले पॉवेल को उनका तरीका सही नहीं लगता और वे स्थिरता और संतुलन बनाए रखना चाहते हैं.
चूंकि पिछले एक महीने में टैरिफ को लेकर बहुत उठापटक चल रही है, इसलिए पहले उसी की बात करते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कहते हैं कि टैरिफ से अमेरिका को फायदा हो रहा है, घरेलू इंडस्ट्री को सुरक्षा मिल रही है. दूसरे देश पहले अमेरिका को लूट रहे थे, जबकि अब उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है. ट्रंप हालांकि, अपने टैरिफ वाले फैसले की नेगेटिव साइड को बिलकुल नजरअंदाज करते हैं, जोकि सीधा-सीधा महंगाई और उससे पैदा होने वाले संकट से जुड़ा है. वे केवल तेल और अंडे की कीमतों में आई कमी को लेकर अपनी ही पीठ थपथपा रहे हैं. इसलिए वे कहते हैं कि महंगाई अब कंट्रोल में है और फेड को ब्याज दरें घटानी चाहिए.
इसके उलट, फेड चीफ जेरोम पॉवेल बार-बार कह रहे हैं कि ट्रंप के टैरिफ से उपभोक्ता कीमतें बढ़ाएंगे और विकास धीमा होगा. वे कहते हैं कि टैरिफ से मुद्रास्फीति “अस्थायी” या “लगातार” बढ़ सकती है. अब फेड के सामने एक बड़ी है. वह यह कि यदि ब्याज दरें कम कर दी जाएं तो मुद्रास्फीति बढ़ेगी, विकास रुकेगा और बेरोजगारी भी बढ़ेगी. इसलिए, क्योंकि अगर कोई चीज चीन से अमेरिका तक पहुंचेगी तो उसे बड़े टैरिफ से होकर गुजरना पड़ेगा. अब कंपनियां सारा भार खुद तो वहन करेंगी नहीं, और उपभोक्ता पर ही डालेंगी. तो महंगाई बढ़ेगी. यही वजह है कि पॉवेल ट्रंप की नीतियों के असर को समझने के लिए इंतजार करना चाहते हैं और जल्दबाजी में कोई फैसला लेना नहीं चाहते.
आर्थिक नीतियों में अंतर
डोनाल्ड ट्रंप आक्रामक आर्थिक नीति पर जोर दे रहे हैं, जिसमें टैरिफ, नियमों में ढील, टैक्स कटौती और घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करना शामिल है. उनका मानना है कि ब्याज दरें कम करने से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, उधार लेना सस्ता होगा और उनके टैरिफ जैसे कदमों से होने वाली अस्थिरता को संभाला जा सकेगा. ट्रंप दावा करते हैं कि उनकी नीतियों से अमेरिकी अर्थव्यवस्था फल-फूल रही है. वे कहते हैं कि पॉवेल ब्याज दरें न घटाकर उनकी राह में रोड़ा अटका रहे हैं.
पॉवेल का ध्यान फेडरल रिजर्व के दोहरे लक्ष्य पर है, जिसमें मुद्रास्फीति को 2 फीसदी के आसपास रखना और अधिकतम रोजगार सुनिश्चित कराना है. वे चिंतित हैं कि ट्रंप के टैरिफ, जैसे सभी आयात पर 10% टैक्स और चीनी सामान पर 245 फीसदी तक टैक्स, मुद्रास्फीति को बढ़ाएंगे और आर्थिक विकास धीमा करेंगे. पॉवेल ने “स्टैगफ्लेशन” (उच्च मुद्रास्फीति और कम विकास) की आशंका जताई है, जिससे ब्याज दरें कम करना मुश्किल हो रहा है. वे डेटा के आधार पर सतर्क रुख अपनाना चाहते हैं, जब तक कि ट्रंप की नीतियों का असर स्पष्ट न हो.
फेडरल रिजर्व की स्वतंत्रता, पॉवेल हटेंगे क्या?
ट्रंप लंबे समय से फेडरल रिजर्व की स्वतंत्रता को चुनौती देते रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार को ही मॉनिटरी पॉलिसी पर कंट्रोल मिलना चाहिए. उन्होंने पॉवेल की आलोचना की, उनकी “बर्खास्तगी” की मांग की और दावा किया कि वे उन्हें “जल्दी” हटा सकते हैं. कानून राष्ट्रपति को फेड चेयर को हटाने का अधिकार तो देता है, लेकिन केवल गंभीर कारणों पर ही.
जेरोम पॉवेल फेड की स्वतंत्रता को अडिग रखना चाहते हैं. उनका कहना है कि मौद्रिक नीति आर्थिक डेटा पर आधारित होनी चाहिए, न कि राजनीतिक दबाव पर. उन्होंने स्पष्ट किया कि कानूनन राष्ट्रपति उन्हें हटा नहीं सकते और वे मई 2026 तक अपना कार्यकाल पूरा करेंगे. पॉवेल का मानना है कि फेड की स्वतंत्रता अर्थव्यवस्था के लॉन्ग टर्म के हित में जरूरी है.
अर्थव्यवस्था पर अलग-अलग दृष्टिकोण
ट्रंप अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत बताते हैं. वे मार्च 2025 में 228,000 नौकरियों और तेल की कीमतों में कमी का हवाला देते हैं. वे कहते हैं कि पॉवेल का ब्याज दरें न घटाना अनावश्यक और राजनीति से प्रेरित है, खासकर जब यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ECB) ने पिछले एक साल में सात बार दरें घटाई हैं. ट्रंप ने गलत दावा किया कि किराने और अंडों की कीमतें कम हुईं, जबकि डेटा दिखाता है कि अंडों की कीमतें बढ़ी हैं.
इसके विपरित पॉवेल मानते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था “अच्छी स्थिति” में है और श्रम बाजार मजबूत है, लेकिन ट्रंप की नीतियों से अनिश्चितता बढ़ रही है. वे कहते हैं कि दिसंबर 2024 में मुद्रास्फीति 2.9 फीसदी थी, जो फेड के 2 फीसदी लक्ष्य से अधिक है, और टैरिफ इसे और बढ़ा सकते हैं. मार्च 2025 में बेरोजगारी दर 4.2 फीसदी तक बढ़ी, जो श्रम बाजार के जोखिम को दिखाता है. पॉवेल सतर्क रुख अपनाना चाहते हैं ताकि जल्दबाजी में गलत कदम न उठे.
राष्ट्रपति-फेड चीफ के बीच क्या ऐसा पहली बार हुआ?
सच तो ये है कि यह तनाव नया नहीं है. 1970 के दशक में राष्ट्रपति निक्सन ने फेड चेयर आर्थर बर्न्स पर दबाव डाला था, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ी थी. ट्रंप का रवैया संस्थानों को चुनौती देने की उनकी रणनीति का हिस्सा है, जैसे कि उन्होंने संघीय इंस्पेक्टर जनरल को हटाया या एलन मस्क को सरकारी खर्च कटौती का जिम्मा दिया.
ट्रंप भले ही पॉवेल को हटाने की धमकी दें, लेकिन 1935 के अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार उनके पास ऐसा करने का अधिकार सीमित है. हालांकि, एक नया सुप्रीम कोर्ट केस इस स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है. ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेन्ट ने भी पॉवेल को हटाने से बाजार में अस्थिरता की चेतावनी दी है.
वैसे, अमेरिका के लोग इस खेल को अच्छे से समझ रहे हैं. बहुत से लोग ट्रंप के फैसलों से सहमत नजर नहीं आते और कहते हैं कि ट्रंप टैरिफ के नुकसान छिपाने के लिए फेड को निशाना बना रहे हैं. ट्रंप के टैरिफ के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए हैं.